संजीत यादव हत्या कांड :पुलिसिया लापरवाही ने लगाया खाकी पर बदनुमा दाग .............
कानपुर के मामले ने एक बार फिर खाकी पर बदनुमा दाग लगा दिया। ये मामला है लैब टेक्नीशियन के अपहरण और हत्या का, जो खूब चर्चाओं में है। जिसकी वजह से यूपी पुलिस की काफी किरकिरी हो रही है। इससे मामले में पीड़ित परिजनों के आरोप 5 बिंदुओं में पुलिस की चौंकाने वाली चूक और उदासीनता को उजागर करते हैं।
1 -संजीत की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराए जाने के एक हफ्ते बाद 29 जून को उन्हें अपहरणकर्ताओं से फिरौती के लिए पहली कॉल मिली थी। जबकि पुलिस का कहना है कि 26 या 27 जून को लैब टेक्नीशियन की हत्या कर दी गई थी, तो उन्होंने हत्या के बाद पहला फोन क्यों किया?
2- संजीत के परिवार को 15 से ज्यादा फिरौती की फोन कॉल आईं। इसके बाद उन्होंने पुलिस से संपर्क किया। तब निलंबित आईपीएस अधिकारी अपर्णा गुप्ता ने उनसे फिरौती के 30 लाख रुपये का इंतजाम करने के लिए कहा। फिर 13 जुलाई को, पुलिस द्वारा जोर दिए जाने के बाद संजीत यादव के पिता चमन 30 लाख रुपये लेकर गुजैनी राजमार्ग पर गए। उन्होंने अपहरणकर्ताओं से 30 मिनट तक बातचीत की फिर उन्होंने पैसों से भरा बैग फ्लाईओवर से रेलवे क्रॉसिंग पर फेंक दिया। हालांकि इसके बाद भी संजीत को रिहा नहीं किया गया और फिरौती की रकम भी बरामद नहीं की गई।
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3- मीडिया में यह मामला आ जाने के बाद पुलिस ने संजीत के परिवार पर दबाव बनाया कि वो सबसे कहें कि उनसे कोई पैसा नहीं लिया गया। संजीत के परिवार को शक है कि निलंबित बर्रा इंस्पेक्टर सहित स्थानीय पुलिस ने अपहरणकर्ताओं से मिलीभगत कर फिरौती की रकम ले ली होगी।
4- परिजनों का यह भी आरोप है कि संजीत का अपहरण होने के बाद पुलिस ने बहुत लापरवाही बरती थी। जब वे लोग कानपुर में एसएसपी दिनेश कुमार पी के कार्यालय के बाहर धरने पर बैठे, तब इस मामले में उचित जांच के आदेश दिए गए थे।
5- पुलिस की लापरवाही को उजागर करने वाली इस खौफनाक घटना के बावजूद, कानपुर के डीएम ब्रह्मदेव राम तिवारी और एसएसपी दिनेश कुमार पीड़ित परिवार से मिलने नहीं आए। जबकि इस बात की पुष्टि भी हो चुकी थी कि संजीत की हत्या उसके दोस्तों ने की थी और उसकी लाश पांडु नहर में फेंक दी गई थी।
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