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विधि विधान से करे गणपति की स्थापना

गणेश चतुर्थी के विषय में जाने 


भगवान गणेश के जन्म दिन के उत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह मान्यता है कि भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष के दौरान भगवान गणेश का जन्म हुआ था। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार गणेश चतुर्थी का दिन अगस्त अथवा सितम्बर के महीने में आता है।

गणेशोत्सव अर्थात गणेश चतुर्थी का उत्सव, १० दिन के बाद, अनन्त चतुर्दशी के दिन समाप्त होता है और यह दिन गणेश विसर्जन के नाम से जाना जाता है। 



गणपति स्थापना और गणपति पूजा मुहूर्त



  • ग्रंथों के अनुसार- गणेश जी का जन्म मध्याह्न काल में हुआ था, इसलिए इसी समय स्थापना और पूजा करनी चाहिए

  • इस दिन किए गए दान, व्रत और शुभ कार्य का कई गुना फल मिलता है

  • प्रतिमा पूर्ण होनी चाहिए, इसमें गणेश जी के हाथों में अंकुश, पाश, लड्डू हो और हाथ वरमुद्रा में 


हिन्दु समय गणना के आधार पर, सूर्योदय और सूर्यास्त के मध्य के समय को पाँच बराबर भागों में विभाजित किया जाता है। इन पाँच भागों को क्रमशः प्रातःकाल, सङ्गव, मध्याह्न, अपराह्न और सायंकाल के नाम से जाना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन, गणेश स्थापना और गणेश पूजा, मध्याह्न के दौरान की जानी चाहिये। वैदिक ज्योतिष के अनुसार मध्याह्न के समय को गणेश पूजा के लिये सबसे उपयुक्त समय माना जाता है।


गणेश स्थापना के शुभ मुहूर्त


सुबह : 09:27 से 11:01 तक


दोपहर : 02:15 से 03:30 तक


शाम : 04:00 से रात 08:05 तक


कैसी हो गणपति मूर्ति 


घर, ऑफिस या अन्य सार्वजनिक जगह पर गणेश स्थापना के लिए मिट्टी की मूर्ति बनाई जानी चाहिए। गणेशजी की मूर्ति में सूंड बाईं ओर मुड़ी होनी चाहिए। घर या ऑफिस में स्थाई रूप से गणेश स्थापना करना चाह रहे हैं तो सोने, चांदी, स्फटिक या अन्य पवित्र धातु या रत्न से बनी गणेश मूर्ति ला सकते हैं। गणेश प्रतिमा पूर्ण होनी चाहिए। इसमें गणेश जी के हाथों में अंकुश, पाश, लड्डू हो और हाथ वरमुद्रा में (आशीर्वाद देते हुए) हो। कंधे पर नाग रूप में जनेऊ और वाहन के रूप में मूषक होना चाहिए।


1. गणेश चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर दैनिक क्रियाएं कर के, नहाएं और शुद्ध वस्त्र धारण करें। 


2. पूजा के स्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुंह रखकर कुश के आसन पर बैठें। 


3. अपने सामने छोटी चौकी के आसन पर सफेद वस्त्र बिछा कर उस पर एक थाली में चंदन या कुमकुम से स्वस्तिक बनाएं और उस पर शास्त्रों के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान श्रीगणेश की मूर्ति स्थापित करें और फिर पूजा शुरू करें।


पूजा शुरू करने से पहले ये मंत्र बोलें


गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं। 


उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥



  • इसके बाद संकल्प लेकर ऊं गं गणपतये नम: मंत्र बोलते हुए जल, मोली (पूजा का लाल धागा) चंदन, सिंदूर, अक्षत, हार-फूल, फल, अबीर, गुलाल, हल्दी, मेहंदी, यज्ञोपवित (जनेउ), दूर्वा और श्रद्धानुसार अन्य सामग्री चढ़ाएं। इसके बाद गणेशजी को धूप-दीप दर्शन करवाएं। फिर आरती करें। 

  • आरती के बाद 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास रखें और 5 ब्राह्मण को दान कर दें। बाकी प्रसाद में बांट दें। फिर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देने के बाद शाम को स्वयं भोजन करें।


पूजा के बाद ये मंत्र बोलकर गणेशजी को नमस्कार करें 


विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय |


नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ||


चतुर्थी को नहीं करने चाहिए चन्द्रमा दर्शन 


चतुर्थी तिथि शुरू होने से लेकर खत्म होने तक चंद्रमा का दर्शन नहीं करना चाहिए। यदि भूल से गणेश चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन हो जाएं तो मिथ्या दोष से बचाव के लिए निम्नलिखित मंत्र का जाप करना चाहिए 


'सिंह: प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हत:।

सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकर:"

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