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प्याज सौ के पार राजनीतिक सरगर्मियां हुई तेज, बनने लगा है मुद्दा

उरई। आलू और प्याज की कीमतों को लेकर पूर्व में भी राजनीतिक गतिविधियां तेज रहीं है और मौजूदा समय में भी ऐसा ही आलम देखने को मिल रहा है जिसकी वजह से लोगों को महंगाई का सामना करने के लिए विवश होना पड़ रहा है। वहीं कल तक इस महंगाई को लेकर जो पार्टियां थाली और चम्मच बजाकर अपना विरोध प्रदर्शन करती थी अब वहीं चुप्पीं साधें हुए है।



- संसद से लेकर सड़क पर महंगाई को लेकर निकल रहें


प्याज जो महंगाई के आंसू रूला रहा है और लोग दो किलो की जगह ढाई सौ ग्राम में काम चला रहें है। फिर भी यह महंगाई थामे नही थम रहीं है इसको लेकर हो-हल्ला बहुत हो रहा है। कांग्रेसी गले में प्याज टांगकर प्रदर्शन करते है वही पूर्व के चुनाव में भाजपा ने इसे मुददा बनाया था, थाली पीटी और हाय-हाय चिल्लाया। आज इस महंगाई पर चूंकि वों केंद्र में बैठे हुए है इसलिए चुप्पी साधे हुए है। हालात दिन प्रतिदिन खराब होते जा रहें है। सबसे मजे की बात तो यह है कि लोग अब कमेंटस करते है कि प्याज नहीं खाना चाहिए इस तरह के कमेंटस करने से न तो महंगाई पर कोई असर आ रहा है और न हीं इनको खाने वालों की संख्या में कमी। महंगाई जिस गति से सुरसा जैसा विकराल मुंह खोल रहीं है। वह आने वाले समय के लिए शुभ संकेत नहीं है।


प्याज हीं नहीं लगभग हर सब्जी महंगाई की ओर बढ़ रहीं है। जाड़ो के सीजन में आलू जो सस्ता बिका करता था वों भी अब महंगा हो गया है फिर भी देश में अच्छे दिन बताए जा रहें है। प्याज लगभग हर सब्जी में डाला जाता है परंतु अब होटलो से लेकर अन्य जगहों पर इसका अभाव नजर आ रहा है। जो प्याज कभी मार्केट में दिखाई नहीं देती थी वों भी नजर आ रहीं है। कहां जाये तो गलत नहीं होगा कि सडी गली से लेकर अच्छी सभी तरह की प्याज बाजार में उपलब्ध है। सरकार अपने मुददे से भटक रहीं है और सिर्फ एक दूसरे पर छींटाकशीं करने में लगें हुए है। अचानक प्याज की बढ़ती हुई कीमतें निश्चित रूप से मुददा बनीं हुई है।


संभवत: कई सालों बाद प्याज की इतनी कीमत बाजार में नजर आ रहीं है इसके लिए किसी हद तक मौसम को भी जिम्मेंदार माना जा रहा है जो पूर्व में भीषण बारिश हुई है वह भी कारण बना हुआ है। खपत अधिक पैदावार कम होने से कहीं न कहीं प्याज की कीमतों में इजाफा हुआ है। वहीं इसके थोक व्यापारी इस महंगाई का पूरा मजा लेने में लगे हुए है और लें भी क्यों नही मौका मिला है तो कमाने में चूंक नहीं करनी चाहिए। सब्जी मंडी में प्याज की आबक कम है। वहीं अन्य सीजनेबल सब्जियां भी कम नजर आ रहीं है क्योंकि चुनाव इस समय दूर है इसलिए नेताओं को प्याज की चिंता ज्यादा नहीं सता रहीं है अगर चुनाव सिर पर होते तो निश्चित रूप से यह प्याज मुुददा बन जाती।


पूर्व के काल में दिल्ली में प्याज और आलू की कीमतो से सरकार चलीं गई थी। चूंकि जनता इन सभी मुददो को आने वाले समय में भूल जाती है इसलिए मौजूदा समय में निश्चित रूप से आम जनता परेशान है और इसका कोई वैकल्पिक हल भी नजर नहीं आ रहा है। नेता सिर्फ गाल बजाने में लगे हुए है वास्तविकता यह है कि किसी भी क्षेत्र में चले जायें महंगाई अपनी चरम सीमा पर खड़ी हुई है। लोगो की जेब हल्की करने में लगीं हुई है। 


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