Breaking News

जिलाधिकारी के सख्त आदेश के बाबजूद छुटटा जानवरों पर नहीं लग पा रहीं है लगाम

- अधिकांश गौशाला बनी शोपीस
- छुटटा सांड रास्ते के बन रहें है गतिवरोधक, कई कर चुकें घटनायें
- पालिका, न्याय पंचायत, प्रधान और सचिव हलके में ले रहें है आदेश को
- कागजो के आदेश क्या नहीं पहुंचते इनके पास तक
- ईटिंग, मीटिंग, चीटिंग तक ही समां कर रह गई व्यवस्था 


उरई।


अन्ना जानवर जो समाज के लिए नासूर बनते जा रहें है और इन पर किसी तरह से कोई लगाम नहीं लग पा रहा है जबकि इन्हें रोकने के लिए शासन और प्रशासन के सख्त आदेश है इसके बाबजूद रोड, गली, मोहल्ले, मंदिर के आजू बाजू यह जबरदस्त दस्तक दे रहें है जिससे लोगो को चलना भारी पड़ रहा है। वहीं कई घटनायें घटने के बाबजूद इनके ऊपर पालिका, न्याय पंचायत से लेकर अन्य संस्थानो का ध्यान नहीं जा रहा है जबकि जिलाधिकारी द्वारा सख्त आदेश दिए गए है कि छुटटा जानवर न दिखें अन्यथा कार्यवाही के लिए तैयार रहें।



फोटो परिचय:- सडक पर लगा अन्ना जानवरो का झुंड।


विगत दिनों जिलाधिकारी डा.मन्नान अख्तर ने आवारा जानवरों को लेकर एक आवश्यक बैठक विकास भवन में सम्पन्न की थी और जिसमें सभी ईओं, न्याय पंचायत, पालिका से लेकर वीडियो और अन्य अधिकारी मौजूद थे जिनको उन्होंने अपना मकसद अवगत करा दिया था और एक सप्ताह में रिपोर्ट भी प्रेषित करने की बात कहीं गई थी इसके बाबजूद भी खुलेंआम छुटटा जानवर दिखाई दे रहें है जिन पर किसी भी तरह की कोई लगाम नहीं कसी गई। शहर में मच्छर चौराहें से लेकर घंटाघर एवं अन्य रोडो पर दर्जनो आवारा जानवर खड़े रहते है जिसमें कुछ पालतू होते है। दूध का उपयोग कर उन्हें छुटटा कर दिया जाता है। ऐसे में लोग परेशान हो गए है। कई बार यह जानवर भीषण युद्व रोड पर ही करने लगते है जिससे आसपास के लोग चुटहिल भी हुए है। यह व्यवस्था लगातार चलीं आ रहीं है और जिसको लेकर कई बार मीटिंगों का दौर चल चुका है। शासन और प्रशासन द्वारा करोडो रूपए में इसमें खर्च किए जा चुकें है फिर भी इनकी दशा ठीक नहीं है।


सांड जो भारी भरकम शरीर के होते है और वों अपनी एक ही ठोकर से लोगो का काम तमाम करने में सक्षम है, इन आवारा जानवरो का झुंड जो बाजार आने जाने वालों को इस कदम परेशान करता है कि निकलना लोगो को भारी पड़ रहा है। अगर कोई दोपहिया वाहन से सब्जी या फल का थैला लेकर चलता है तो यह वाहन के झोले में अपना मुंह डालकर खींच लेते है और गंभीर घटनायें घट जाती है।


लगातार बढ रहें इनके आतंक को रोकने के लिए योगी सरकार ने एक नहीं कई प्रावधान किए है। जागरूकता भी छेडी गई परंतु कहीं इसका कोई असर दिखाई नहीं पड़ रहा है। इस मुददे को लेकर क्षेत्रीय अधिकारी ईटिंग, मीटिंग, चीटिंग में उलझे रहते है। जब भी उनका फोन लगाओ तो वाटसएप या मीटिंग में उलझे है। सही सटीक जबाब देना उन्हें आता हीं नहीं है। आखिरकार जब सरकार की मंशा साफ है तो फिर इस काम में उलझन कहा पैदा हो रहीं है। इससे तो यह प्रतीत हो रहा है कि गौशालायें कागजो में ही सीमित हो गई और उसमें ही जानवर बंध गए और हिसाब किताब पूरा प्रशासन को सौंप दिया गया। अगर नहीं तो जमीनी हकीकत में गौशालयें दिखनी चाहिए और अगर गौशालयें जमीनी हकीकत में काम करती तो निश्चित रूप से अन्ना जानवरो पर किसी हद तक विराम लग गया होता। प्रधान और क्षेत्रीय सचिव को गौशालाओ में उतनी रूचि नहीं है जितनी की आवंटित धन के बंदरबांट में है। चूंकि प्रधानी की अंतिम बेला है, इस पर वो कहावत चरितार्थ हो रही है कि लूट सकें तो लूट क्योंकि अंत काल प्रधानी नही मिलना है और जो कुछ निकाला जा सकता है उसको निकालने में कोई कोताही नही बरती जायें। यहीं कारण है कि प्रधानो की रूचि गौशाला बनाने में दिखाई नहीं पड रहीं है।


गर हर गांव में गौशाला बन गई होती और पुलिस व बीडियो ने शिकंजा कसा होता तो आज स्थिति बदल गई होती। जिलाधिकारी की एक अच्छी सोच को अधीनस्थ अधिकारी पलीता लगाने में लगे हुए है। उनका मकसद है कि जो योजना बनाई गई है उसका मकसद पूरा हो और अन्ना जानवरों पर विराम लगे। यहां तक उन्होने यह भी आदेश किए थे कि गौशाला में दो पार्टस बनाए जाये आधे में गाय व दूसरे में सांड रखें जायें। इनके खाने पीने का पूरा इंतजाम किया जायें परंतु दिया हुआ समय गुजर गया है। आज स्थिति जस की तस बनीं हुई है। जनहित में जिलाधिकारी से पुन: मांग की जाती है कि वों दिए गए निर्देशों का अपने अधीनस्थों से पालन कराए ताकि जानवर जो अन्ना घूम रहें है वों थम सके और जनपद में हो रही घटनायें पर विराम लग सकें।


कोई टिप्पणी नहीं